विचार-सार

1. एक काम के लिए दस व्यक्तियों को कहने का मतलब है आप दस व्यक्तियों पर ही अविश्वास कर रहे हैं। एक अच्छा चुनों, उस पर विश्वास करो, फिर चाहे वो आदमी हो या ईश्वर। ईश्वर पर अगर विश्वास करते हो तो सबको छोड़ो। आदमी आपका बुरा सोच सकता है, पर ईश्वर कभी नहीं।

2. हर काम पूर्णता से करो। चाहे वह पाप हो या पुण्य। प्यार हो या शत्रुता। ईश्वर पूर्ण है, इसीलिए उसे अपूर्णता बिल्कुल पसंद नहीं।

3. कोई भी अनैतिक काम करने से पहले याद रखो; कोई है, जो आपको देख रहा है। कोई है, जो आपको सुन रहा है, और वो है- ईश्वर।

4. उनसे कभी मत मिलो जो आपसे बेमन मिलते हैं, फिर चाहे वो देवता ही क्यों न हों। दूर रहो उनसे जो आपको स्नेह, सत्कार और शुभकामना भी नहीं दे सकते हैं।

5. सारी दुनिया के साथ रहने से अच्छा है आदमी स्वयं के साथ रहे।

6. 'मांगना और चाहना' दोनों ही आदमी को को कमज़ोर करते हैं। कोशिश करो और इन दोनों से बचो।

7. जो ईश्वर से बार-बार मांगते हैं, उन्हें देने में ईश्वर विचार करता है। जो बिल्कुल नहीं मांगते, उन्हें तत्काल दे देता है।

8. जीवन में एक व्यक्ति ऐसा चुनों; जिस पर आप श्रद्धा और विश्वास रखते हों। जिसकी बात व निर्णय आपके लिए हर स्थिति में मान्य व स्वीकार्य हों, चाहें वो सही हो या गलत। इससे आप अनिर्णय की स्थिति से तो बच ही जाएंगे, साथ ही उसके निर्णय में ईश्वर का प्रति बिम्ब देखेंगे।

9. जीवन में किसी का खान, अपमान और अहसान कभी नहीं भूलना चाहिए। ईश्वर और माँ को छोड़कर मौका आने पर सबका हिसाब-किताब चुकता करना चाहिए, फिर वो स्वयं का पिता ही क्यों न हो।

10. चौबीस घंटे में एक बार मृत्यु पर विचार अवश्य करना चाहिए; इससे जीवन में सच और संतुलन बना रहता है।

11. 'प्यार और यार' (मित्र) के साथ 'शर्त' और 'अर्थ' नहीं जोड़ना चाहिए।

12. मन पर 'भूल और दोषों' की धूल जमी रहती है। इसलिए मन की शुद्धि के लिए तत्काल गलती स्वीकार करनी चाहिए।

13. अपने जीवन को आईने की तरह साफ-बेदाग रखो, क्योंकि कल तुम्हारे बच्चे उसमें अपना चेहरा देखेंगे।

14. अच्छा करना ही नहीं, बल्कि अच्छा सोचना भी ईश्वर की प्रार्थना है।

15. व्यक्ति का कार्य- व्यवहार और उपस्थिति महबूबा की तरह होनी चाहिए, जिसके आने से बहार आए और जाने से बहार जाए।

16. अपने क्षेत्र का श्रेष्ठ प्राप्त करके उस क्षेत्र को छोड़ देना चाहिए।

17. आदमी की सबसे बड़ी और पहली प्राथमिकता है, देश। उसके बाद राज्य, क्षेत्र, समाज और घर। लेकिन इन सबसे भी बड़ी प्राथमिकता है, वह है, मनुष्यता-आदमियत-इंसानियत।

18. अनुशासन और ईमान आत्मा का विषय है; जो दिन और रात में समान रहता है, समान दिखता है।

19. अगर किसी ने आपका बुरा किया है, कर रहा है या करना चाहता है, तो आप तटस्थ रहकर ईश्वर पर छोड़ो और उसके निर्णय की प्रतीक्षा करो।

20. आप जिस देवता की आराधना करते हैं, उसके गुणों का अंश मात्र भी अपना लें तो आपकी आराधना सार्थक हो जाएगी।
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