संजय झाला भावबोध और भाषा के स्तर से पहचाने जाने वाले व्यंग्यकार हैं। परिवेश की विसंगतियों पर इनकी पैनी पकड़ है। इनके व्यंग्य लेखन का प्रभावशाली पक्ष यह है कि वे हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत की विभक्तियों और क्रिया-पदों का मिश्रण करके अभिव्यक्ति को रोचक बना देते हैं। उन्होंने निबंध, इंटरव्यू, काव्य, कथा सहित अनेक शैलियों का प्रयोग किया है। उनके लघु टिप्पणीपरक व्यंग्य उनकी प्रतिभा और व्यंग्य चेतना का मुखर प्रतिनिधित्व करते हैं।-राजस्थान पत्रिका, जुलाई 2008