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संजय झाला व्यंग्य की दुनिया में अच्छा खासा रुतबा हासिल कर चुके हैं। वो एक हाथ में कड़ा, दोनों बाजुओं के खुले टिच बटन, कानों को उलांघ गर्दन पर आने को आतुर परन्तु सलीके से कंघी किए बाल और राजस्थान के तत्कालीन छोटे से कस्बे दौसा की गलियों में भटकता, मटकता या कहें कि लटकता संजय एक दिन व्यंग्य की दुनिया में इतना बड़ा नाम कमा जाएगा, ये किसी ने सोचा भी नहीं था। अपनी तीसरी कृति के रूप में 'तू डाल-डाल, मै पात-पात' एक प्रयोगवादी कृति है, इसमें कुल 62 रचनाएँ हैं, जिन्हें पढकर लगता है कि संजय 62 साल का हो चुका है, अपनी उम्र से दो दर्जन अधिक। रचनाएँ इतनी गहरी एवं परिपक्व हैं कि व्यंग्य के कद्रदानों, विद्वानों और संस्थानों को बहुत से सबक दे गई।
- आकाशवाणी, दिल्ली