सही मायनों में देखा जाए तो साहित्य का सबसे ज्यादा शक्तिशाली माध्यम व्यंग्य विधा ही है। इस विधा के साहित्यकारों ने हमेशा अपनी बात कही है और बेबाक कही है। कोई डर इस विधा को नहीं डरा सका। साथ ही इस विधा की लोकप्रियता ने साहित्य को नया जीवन दिया है। लेकिन हिन्दी के तथाकथित आलोचकों ने इस विधा को सम्मान देने से साफ मना कर दिया और व्यंग्यकार सिर्फ मुस्कराकर रह गए। समय के साथ आलोचकों के कलम की स्याही खत्म हो गई और व्यंग्य ने हरिशंकर परसाई और शरद जोशी जैसे रत्नों को चमकाया। संजय झाला ने इन्हीं की चमक में अपनी कलम चलाई है। उन्होंने व्यंग्य में सदैव नए प्रयोग किए हैं और वे गुदगुदाने में कामयाब भी होते हैं। इनकी शब्दकारी रोचक है। कटाक्ष इस विधा का ब्रह्मास्त्र है और इसका भरपूर उपयोग किया है संजय ने। संजय मिट्टी से जुड़े आदमी हैं और उनकी रचनाओं से घर की खुशबू आती है।-अहा! ज़िदंगी, अप्रैल 2008